हैदराबाद,
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा (उच्च शिक्षा और शोध संस्थान) तथा ‘साहित्य मंथन’ के संयुक्त तत्वावधान में आगामी 4 जुलाई (सोमवार) को दोपहर साढ़े 3 बजे से सभा के खैरताबाद स्थित परिसर में एकदिवसीय राष्ट्रीय साहित्यिक समारोह आयोजित किया जा रहा है। यह वही परिसर है जिसमें शर्मा जी शैक्षणिक सेवाएं देते हुए निवृत्त हुए मगर इस संस्थान और संस्थान से जुड़े विद्वानों ने सलाहकार, परीक्षक और साहित्यकार के रूप में निवृत्त नहीं होने दिया। ऐसे में प्रतिष्ठित साहित्यकार प्रो. ऋषभदेव शर्मा के सम्मान में प्रकाशित अभिनंदन ग्रंथ ‘धूप के अक्षर’ का लोकार्पण हिंदी का यह संस्थान अपने प्रांगण में कर शर्मा जी के व्यक्तित्व के मूल्यांकन का गवाह बन रहा है।
समारोह के स्वागाताध्यक्ष प्रो. संजय लक्ष्मण मादार ने बताया कि कार्यक्रम का उद्घाटन राष्ट्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कृत वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. एन. गोपि करेंगे। अध्यक्ष महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व अधिष्ठाता प्रो. देवराज होंगे। देहरादून से पधारीं प्रो. पुष्पा खंडूअतिविशिष्ट अतिथि का आसन ग्रहण करेंगी। विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. गोपाल शर्मा, डॉ. अहिल्या मिश्र, डॉ. राकेश कुमार शर्मा, डॉ. वर्षा सोलंकी एवं सभा के प्रधान सचिव जी. सेल्वराजन उपस्थित रहेंगे।
अभिनंदन ग्रंथ की प्रधान संपादक एवं समारोह की समन्वयक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने बताया कि ‘धूप के अक्षर’ शीर्षक अभिनंदन ग्रंथ दो जिल्दों में प्रकाशित है। लगभग 700 पृष्ठ के इस ग्रंथ में 60 लेखकों के कुल 82 आलेख सम्मिलित हैं। इनमें देश भर के विद्वानों और समीक्षकों के साथ-साथ प्रो. ऋषभदेव शर्मा के अंतरंग मित्रों, सहकर्मियों और शोध छात्रों के संस्मरण और समीक्षाएँ शामिल हैं। उन्होंने यह जानकाभी दी कि विमोचन के उपरांत अभिनंदन ग्रंथ की प्रतियाँ संपादन मंडल और सहयोगी लेखकों को समर्पित की जाएँगी।
समारोह के संयोजक एवं सभा के सचिव एस. श्रीधर ने सभी साहित्य प्रेमियों से कार्यक्रम में उपस्थित होने की अपील की है।
लोकार्पण के अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ रहे इस ग्रंथ को दो भागों में प्रकाशित किया गया है जिसमें कुल 6 खंड हैं। इस ग्रंथ की संपादक हैं डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा और उनके सहयोगी संपादक हैं डॉ. राकेश कुमार शर्मा, डॉ. बी. बालाजी (बालाजी बाबुराव मंगनाळे),
डॉ. चंदन कुमाऔर डॉ. मंजु शर्मा।
प्रथम खंड में 13 विद्वानों के 13 समीक्षात्मक आलेख सम्मिलित हैं। प्रथम खंड का शीर्षक है ‘चिंतन के आयाम: सारे अक्षर सूर्यमुखी हो जाएँ। जिसके लेखक हैं, डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा, डॉ. अनीता शुक्ल (अनीता शुक्ल), प्रो. प्रतिभा मुदलियार, डॉ. चंदन कुमारी, डॉ. डॉली, श्रीमती शीला बालाजी (शीला इंगले), डॉ. मंजु शर्मा, प्रो. संजय एल. मादार, डॉ. विजेंद्र प्रताप सिंह, डॉ. अनुपमा तिवारी, हुडगे नीरज, श्रीमती शशि राय और डॉ. सुषमा देवी।
दूसरे खंड का शीर्षक है ‘काव्य कृतित्व: रोशनी का इक दुशाला लाइए’। जिसके लेखक हैं, डॉ. कैलाश चंद्र भाटिया (स्व.), डॉ. प्रेमचंद्र जैन (स्व.), चंद्रमौलेश्वर प्रसाद (स्व.), प्रो. एस. ए. सूर्यनारायण वर्मा (स्व.), प्रो. देवराज (2), प्रो.दिलीप सिंह, डॉ. कविता वाचक्नवी, डॉ. रामजी सिंह ‘उदयन’, डॉ. प्रमीला के. पी., और डॉ. एन. लक्ष्मी ‘प्रिया’।
तीसरे खंड का शीर्षक है ‘आलोचना दृष्टि: रोशनदान जरूहै’। जिसके लेखक हैं, डॉ. बालशौरि रेड्डी (स्व.), प्रो. एम. वेंकटेश्वर (स्व.),
प्रो. देवराज, प्रो. जगमल सिंह, प्रो. गोपाल शर्मा, डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा, डॉ. बी. बालाजी (बालाजी बाबुराव मंगनाळे), डॉ. परमान सिंह और प्रवीण प्रणव।
चैथे खंड का शीर्षक है ‘संपादकीय विवेक: हम प्रकाश के प्रहरी’। जिसके लेखक हैं, डॉ. योगेंद्रनाथ मिश्र, प्रो. निर्मला एस. मौर्य, प्रो.गोपाल शर्मा, डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा, डॉ. वेदप्रकाश अमिताभ, डॉ. चंदन कुमाऔर प्रवीण प्रणव।
पांचवे खंड का शीर्षक है ‘व्यक्तित्व: दिशाओं को लीपती श्वेत हँसी’। जिसके लेखक हैं, प्रो. देवराज, कु. समीक्षा शर्मा, डॉ. अंतरिक्ष सैनी, पवन कुमार ‘पवन’, जसवीर राणा, डॉ. दिनेश प्रताप तोमर, डॉ. अहिल्या मिश्र, डॉ. करन सिंह ऊटवाल, प्रो. पी. राधिका, श्रीमती पवित्रा अग्रवाल, डॉ. वर्षा सोलंकी, डॉ. रामनिवास साहू, डॉ. रेखा अग्रवाल, संजीव कुमार, डॉ. सैयद मासूम रजा, अमन कुमार त्यागी, चंद्रप्रताप सिंह, लक्ष्मी नारायण अग्रवाल, डॉ. गिरिजा रानी खन्ना, डॉ. विनीता कृष्णा, डॉ. सुपर्णा मुखर्जी, डॉ. शिवकुमार राजौरिया, डॉ. आशा मिश्रा ‘मुक्ता’, और डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा
छठे खंड का शीर्षक है ‘मूल्यांकन: उपजे बीज अनेक, बाली गेहूँ की’। जिसके लेखक हैं, प्रवीण प्रणव, अवधेश कुमार सिन्हा, डॉ. राकेश कुमार शर्मा, ज्ञानचंद मर्मज्ञ, डॉ. चंदन कुमा, डॉ. बी. बालाजी बालाजी बाबुराव मंगनाळे, प्रो. निर्मला मौर्य, डॉ. संगीता शर्मा और प्रो. गोपाल शर्मा।
ग्रंथ की रूपरेखा पढ़ने के बाद लग रहा है कि यह प्रो. ऋषभदेव शर्मा के व्यक्तित्व का विशेष मूल्यांकन करता हुआ दिखाई देगा। ग्रंथ में क्या-क्या लिखा गया और क्या शेष रह गया? यह तो ग्रंथ के पठन से ही ज्ञात हो सकेगा किंतु यहां एक बात जो मैं जानता हूं वह यह है कि अभी शर्मा जी का वास्तविक मूल्यांकन शेष रहेगा जिसके लिए उनके विद्यार्थी और शुभचिंतक एक बार फिर प्रयास करेंगे।
शर्मा जी वास्तव में एक सच्चे मार्गदर्शक ही नहीं बल्कि सहयात्री भी हैं। आप उनसे किसी विषय पर चर्चा करें, और फिर उनकी वाणी, शैली और चिंतन पर ध्यान दीजिए। कुछ समय बाद हो सकता है कि आप उस विषय को भूल जाएं परंतु एकाएक शर्मा जी का मैसेज आपकी समस्या के हल के साथ पहुंच जाएगा। बहरहाल प्रो. ऋषभदेव शर्मा जी के अभिनंदन का यह सिलसिला बना रहना चाहिए। इस बार के अभिनंदन की प्रमुख डाॅ. गुर्रमकोंडा नीरजा जी को साप्ताहिक ‘ओपन डोर’ की ओर से साधुवाद।