भारतीय प्रज्ञान परिषद प्रज्ञा प्रवाह मेरठ प्रांत, मुजफ्फरनगर जिला, नव सिद्धार्थ आर्ट ग्रुप दिल्ली, उत्कर्ष ललित कला अकादमी लखनऊ उत्तर प्रदेश, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में "स्वाधीनता के 75 वर्ष एवं राष्ट्र निर्माण में कलाकारों की भूमिका" विषयक नौ द्विवसीय कला उत्सव का आयोजन किया गया। कला उत्सव कार्यक्रम का उद्धघाटन मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक माननीय जे. नंदकुमार जी एवं सिंगापुर के अंतराष्ट्रीय सुविख्यात कलाकार श्री पी गनाना द्वारा डैमोंस्ट्रेशन श्रंखला का प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम में प्रज्ञा प्रवाह पश्चिमी उत्तरप्रदेश उत्तराखंड के क्षेत्रीय संयोजक माननीय श्री भगवती प्रसाद राघव का सानिध्य रहा। विशिष्ट अतिथि डॉ विशाल भटनागर (एमिनेंट आर्टिस्ट, चंडीगड़) रहें।
कला उत्सव कार्यक्रम की अध्यक्षता धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर वीरपाल सिंह (प्रांत अध्यक्ष भारतीय प्रज्ञान परिषद, प्रज्ञा प्रवाह मेरठ ) द्वारा हुआ।कार्यक्रम का प्रारंभ कार्यक्रम संयोजक इंजीनियर अवनीश त्यागी (प्रांत संयोजक भारतीय प्रज्ञान परिषद, प्रज्ञा परिषद मेरठ) ने किया। कार्यक्रम में अतिथियों का परिचय और मंच का संचालन डॉ रजनीश गौतम, प्रस्तावना डॉ वन्दना वर्मा, कार्यक्रम सह संयोजक डॉ नीतू वशिष्ट के द्वारा किया गया। कार्यक्रम का प्रारंभ सरस्वती वंदना के साथ प्रारंभ होकर वंदे मातरम् और कल्याण मंत्र के साथ समापन हुआ।
मुख्य वक्ता प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक माननीय जे. नंदकुमार जी ने स्वाधीनता के 75 वर्ष और कलाकारों के राष्ट्र निर्माण में भूमिका पर बोलते हुए कहा, कि मुझे यह जानकर अति हर्ष हुआ है, कि आज स्वतंत्रता प्राप्ति के 75 वर्ष पूरे होने में कलाकारों की जो भूमिका रही है वह बहुत ही महत्वपूर्ण है। स्वाधीनता आंदोलन में कलाकारों की जो भूमिका रही है, इस विषय को लेकर आज ये कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इसके लिए आप सभी विद्वितजन बधाई के पात्र हैं। आप सभी शिक्षाविद, प्रबुद्ध जन, कलाकार और विधार्थी प्रशंसा के पात्र भी हैं। उन्होंने कहा, कि आज इस कला उत्सव कार्यशाला में व्याख्यान एवं डेमोस्ट्रेशन श्रृंखला में मुझे आने का जो अवसर प्रदान किया गया है, उसके लिए मैं आप सभी शिक्षक एवं प्रबुद्ध जनों का आभारी हूं, और आपका धन्यवाद करता हूं । इसके साथ-साथ आप ने मुख्य अतिथि पी गनाना जी और विशाल भटनागरजी सहित कार्यकर्ताओं को भी धन्यवाद भी ज्ञापित किया। उन्होंने कहा, कि इस कोरोना काल ने हमें नव दुर्गा की पूजा से भी वंचित कर दिया गया था। परंतु आज 9 दिवसीय कला कार्यशाला, व्याख्यान और डेमोंस्ट्रेशन के द्वारा हमें पुनः इस तरह के कार्यक्रम में जुड़ने का अवसर प्राप्त हो रहा है। यह भी हमारे बड़ी अति हर्ष की बात है।
प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक माननीय जे. नंदकुमार जी ने कलाकारी की ओर इशारा करते हुए कहा, कि यह स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए देश के कलाकारो ने अपना संपूर्ण सहयोग दिया और अपने-अपने कार्य के द्वारा ही स्वाधीनता प्राप्त करने में सफलता मिली। इसमें प्रत्येक क्षेत्र के कलाकारो ने अपना भरपूर सहयोग दिया। उसमें भले ही वह कोई चित्रकार रहा हो, मूर्तिकार रहा हो, कवि हो, नाटककार हो, और अभिनेता भी रहे हो, इसमें कोई भी हो उन्होंने इसमें अपना-अपना सहयोग दिया है। जब हमारे देश में ब्रिटिश शासन था, तब हमारे देश का जो इतिहास रहा था, उसको तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत किया गया था। उसे कुछ भ्रामक तरीके से तैयार करके हमारे सामने प्रस्तुत किया गया। जिससे हमारे देश की जनता को हमारे देश के विषय में पूर्ण रूप से जानकारी प्राप्त ही नहीं हो सकी थी। आज उससे भिन्न तरह के व्याख्यान और डेमोस्ट्रेशन प्रोग्राम में आने का अवसर प्राप्त हुआ। मुझे ऐसा लग रहा है, कि अब हमारे देश का जो इतिहास है वह पूर्ण रुप से सभी जनों तक धीरे-धीरे पहुंच जाएगा। क्योंकि इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में प्रबुद्ध जन दूर-दूर से जुड़े हुए हैं, साथ ही छात्र-छात्राएं भी जुड़ी हुई है।
उन्होंने सन् अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति के ऊपर प्रकाश डालते हुए बताया, कि यह क्रांति मेरठ से ही भारत देश के स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत हुई थी। इसके पश्चात यह पूरे देश में फैल गई थी। उन्होंने आगे कहा, कि स्वतंत्रता आंदोलन कोई राजनीतिक आंदोलन नहीं था। यह तो एक विचारधारा थी। एक भाव था, देश के प्रति! किंतु कुछ लोगों को तो यह एक राजनैतिक और केवल राजनीतिक मुद्दे के रूप में दिखाई देता है। जैसे वह एक राजनीतिक आंदोलन था। जिसमें गरम दल और नरम दल नाम के दो दल होते थे। जबकि स्वाधीनता आंदोलन एक वैचारिक धारा थी, जो देश प्रेमियों ने अपने देश की स्वाधीनता के लिए एक मुहिम शुरू की थी। परंतु हमारे लिए दुर्भाग्य की बात यह है, कि हमारे देश के इतिहास को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया है।
उन्होंने क्रांतिकारियों महान नायकों के विषय में बताया, कि रविंद्र नाथ टैगोर जैसे कलाकार स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े थे। क्या उन्होंने स्वतंत्रता के लिए अपना योगदान नहीं किया? रविंद्र नाथ टैगोर नोबेल पुरस्कार विजेता और एक महान व्यक्ति थे। उन्होंने बहुत सारी कविताएं, चित्रकारी, अभिनय, नाटक आदि राष्ट्र को दिए। वह सब प्रकार की कलाओं में पारंगत थे। उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन में अपना पूरा-पूरा महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कई सारे लेख लिखे थे, अनेक कविताएं भी लिखी थी।
उन्होंने आगे बताया, कि यदि किसी देश की इतिहास और संस्कृति को खत्म करना हो, तो उसके तथ्यों को नष्ट कर देना चाहिए। जिससे वह देश ही खत्म हो जाता है। यही रणनीति अंग्रेज ब्रिटिश सरकार ने अपनाई थी! इस बात पर ध्यान महापुरुष का गया, और उन बुद्धिजीवियों ने इस मुहिम में अपना कदम आगे बढ़ाया और भारत मां की लाज बचाने के लिए स्वाधीनता प्राप्ति की ओर चल पड़े। उन कलाकारों उन प्रबुद्ध जनों को मेरा कोटि-कोटि सादर नमन है।
उन्होंने स्वामी विवेकानंद का जिक्र करते हुए बताया, कि स्वामी विवेकानंद किस प्रकार से अपनी मातृभूमि के प्रति श्रद्धावान थे। जब शिकागो में उनका भाषण हुआ था। तब उन्होंने अपनी मातृभाषा हिंदी को ही चुना था। जबकि वह कई भाषाओं के विद्वान रहे थे। आपने भारत देश के गौरवशाली इतिहास की ओर ध्यान देते हुए बताया, कि जहां पर गीता, पुराण, वेद शास्त्रो की रचना हुई है। उन्होंने बताया, कि यदि जनता को कुछ बताना हो, तो उसका केवल और केवल एक ही माध्यम हो सकता है और वह है कला। कला से लोग जल्दी प्रभावित होते हैं और उसका प्रभाव भी जल्दी ही पड़ता है। क्योंकि प्राचीन काल से ही मानव संप्रेषण का सबसे बढ़िया साधन कला ही रही है। जिससे कि यहां के प्रबुद्ध जनों को और छात्र छात्राओं को अपने भारत के गौरवमय इतिहास के विषय में जानकारी प्राप्त हो। आपने कला के साथ-साथ में नाटकों का कला के रूप में भी व्याख्यान किया है। उन्होंने बताया, कि उस समय के नाटकों का बहुत ही महत्व रहता था, और नाटकों के द्वारा ही विभिन्न कहानियों को दर्शाया जाता था। जिससे समाज को एक चेतना एक अनुशासन और एक प्रेरणा मिलती रही थी। उन्होंने टोली माधवराव पेशवा के ऊपर बनाए गए नाटक गिरीश चंद्र घोष के नाटक बाय नारायण जैसे नील दर्पण आदि नाटकों का जिक्र किया। उन्होंने बताया, कि किस प्रकार से नाटक कला मतलब अभिनय कला से लोगों को प्रभावित किया जाता था, और किस प्रकार से देश के जनता को प्रभावित किया जा सकता है। किस प्रकार से सिखाया जा सकता है। हमें अपने देश के गौरव में इतिहास को जानना होगा। उसको पहचानना होगा और अपने देश की संस्कृति को भी। इसी के साथ उन्होंने सबको धन्यवाद और शुभकामनाएं दी।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ पी. गनाना ने कला के विभिन्न रूपों में डैमोंस्ट्रेशन दिखाया। उन्होंने कहा,कि मुझे यह जानकर अति हर्ष हुआ है कि भारत में आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के अवसर पर 9 दिवसीय कला कार्यशाला , व्याख्यान एवं डेमोंसट्रेशन श्रृंखला का आयोजन किया जा रहा है। उन्होंने इसके लिए सभी को धन्यवाद दिया। इस कार्यक्रम में मुझे मुख्य अतिथि के रुप में बुलाया, यह मेरे लिए बड़ा ही गर्व और हर्ष का विषय है। उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन में कलाकारों महत्वपूर्ण योगदान विषय पर विस्तृत रूप में चर्चा की। उन्होंने कहा, कि भारतीय आंदोलन अनेक कलाकारों ने अपनी कविताओं अपने चित्रों और अपने लेखों के द्वारा इस स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय सहयोग किया था। जैसा, कि रविंद्र नाथ का जिक्र आता है, तब रविंद्र नाथ टैगोर बहुत ही अच्छे कवि, विशेषज्ञ ,चित्रकार, अभिनेता तथा कई बहुमुखी प्रतिभा लिए हुए थे। उन्होंने इनके साथ साथ नंदलाल बोस, रामकिंकर बेज, अमृता शेरगिल, राजा रवि वर्मा, सतीश गुजराल, रविंद्र रेड्डी और बंगाल शैली के अन्य कलाकारों का जिक्र करते हुए बताया, कि भारतीय कला सिंगापुर मलेशिया इंडोनेशिया एवं अन्य देशों में किस प्रकार से फल-फूल रही है, किस प्रकार से बाजार में इसकी मांग बढ़ रही है। उन्होंने आगे बताया, कि सिंगापुर, मलेशिया और इंडोनेशिया में भारतीय चित्रों के स्थानों पर संग्रहकर्ता है। जिन्होंने आज भी अपने संग्रह में भारतीय चित्रकारों के चित्रों को संजोकर रखा हुआ है और आज अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय चित्रो की मांग बढ़ रही है। भारतीय चित्रों ने आज अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेजोड़ धाक जमा रखी हुई है। जिनकी खरीदारी भी दिनों दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इसके साथ-साथ ही उन्होंने बंगाल की कला के बारे में बताया, बंगाल कला का जो रेखाचित्र था। वह पूर्ण रूप से भारतीय ही है। संपूर्ण भारतीयता का लुक उसमे दिखाई भी देता है। कई स्थानों पर भी बंगाल शैली के चित्रों का संग्रह प्राप्त होता है। जो बहुत ही सुंदर है। सिंगापुर के प्रधानमंत्री के विषय में भी बताते हुए उन्होंने कहा, कि प्रतिवर्ष वह लोग भारतीय चित्रों के मेले और प्रदर्शनियो का आयोजन करते रहते हैं। जिनमें भारतीय कला को प्रोत्साहन दिया जाता है। आपने बताया, कि कलाकारों को अपनी कला को विकसित करने के लिए क्या-क्या करना चाहिए। किन सिद्धांतों को अपनी कला में उतारना चाहिए। इसके विषय में विस्तृत व्याख्या भी दी। उन्होंने भारतीय कलाकार और कला की प्रशंसा अनेक संदर्भ और व्याख्यान के द्वारा दी।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ विशाल भटनागर ने कहा, कि मुझे बहुत ही हर्ष हो रहा है, कि जिला मुजफ्फरनगर के महाविद्यालय आपस में संयुक्त होकर इस कला कार्यशाला, व्याख्यान और डेमोंसट्रेशन का आयोजन कर रहे हैं, और इनमें भारत की विभिन्न कला संस्थाओं का भी योगदान मिल रहा है उन्होंने सभी को साधुवाद किया, और आभार व्यक्त करते हुए सबको बधाई दी। उन्होंने कहा, कि यह नौ दिवसीय कला कार्यशाला उन सभी लोगों के लिए बहुत ही लाभप्रद होगी जो कला के क्षेत्र में कुछ ना कुछ कार्य कर रहे हैं, और निरंतर उसमें अपने प्रयोग भी कर रहे हैं उनमें चाहे कोई शिक्षक हो या कोई छात्र हो। इस कार्यशाला का लाभ सभी को प्राप्त होने वाला है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है, कि इसमें समाज के सभी प्रबुद्ध व्यक्ति जुड़े हुए हैं, और इस कार्यक्रम को सफल बनाने में सभी अपना अपना प्रयास कर रहे हैं। स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने के बाद कलाकारों की क्या भूमिका रही है, इस विषय पर उन्होंने विस्तृत व्याख्या रखी, और कहा,कि आजकल हमारा बालक वर्ग या कलाकार किस दिशा में जा रहा है। आज की कला किस दिशा में जा रही है, इस विषय पर हमें चिंतन और मनन करना ही होगा। इसके लिए यह कला कार्यशाला बहुत ही महत्वपूर्ण है। जिसमें इन सभी तथ्यों का विचार मंथन किया जा सकता है, क्योंकि यहां कार्यक्रम बहुत ही महत्वपूर्ण संस्थानों से जुड़ा हुआ है। जो बच्चों को सही मार्गदर्शन एवं सही दिशा प्रदान करेगा। इस तरह के कार्यक्रम होते रहने चाहिए। जिससे, कि उन्हें इस चीज का बोध हो जाए, कि वह किस दिशा में जा रहे हैं। यह बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है, कि हमारे इतिहास को तोड़ मरोड़ कर हमारे सामने पेश किया जा रहा है। हमारे वास्तविक इतिहास को छिपा दिया गया है, जो कि मूल रूप में नहीं रहा, और समाज को भ्रामक और भ्रांति से पूर्ण ज्ञान दिया जाता रहा है।
उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन में कला की प्रासंगिकता पर कहा, कि स्वाधीनता की प्राप्ति में कलाकारों का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है, कला के रूप में रविंद्र नाथ टैगोर जैसे अनेक महान कलाकार आते हैं, जिन्होंने शांति निकेतन जैसे संस्थानों की स्थापना की थी। जिसमें रामकिंकर वेज, देवी प्रसाद राय, चौधरी नंदलाल बोस और अन्य अन्य कई प्रसिद्ध आर्टिस्ट वहीं से होकर संपूर्ण देश में अपनी कला को फैलाया और समाज को शिक्षा भी दी है। कला समाज को शिक्षा देने वाली होती है, क्योंकि कला से सभी को प्रेरणा प्राप्त होती है। यदि कला गलत संदेश देती है तो उसका समाज पर गलत प्रभाव जाता है, और यदि वह कला अर्थ पूर्ण है, सही है, तब उसका समाज पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। हमारे कॉलेज और स्कूलों और हमारे जो विषय है इनमें हमारे देश की कला और संस्कृति को ही पढ़ाया जाना चाहिए ना कि अन्य देशों के जैसा। पाश्चात्य सभ्यता का जो पाठ्य क्रम है वह हमारे देश मे पढ़ाया जाता रहा है। वह भी हमारे देश के पाठ्यक्रम के साथ मिलाकर सीखाया भी जा रहा है। जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए। यदि किसी देश की संस्कृति और कला को दबाना है, तब उसको वहां की जनता के समक्ष ना लाया जाए। उसे वहां की संस्कृति और सभ्यता नष्ट हो जाएगी। इस प्रकार की रणनीति पहले से ही भारतीय समाज में खेली जा चुकी है।
विशिष्ट अतिथि श्री विशाल भटनागर जी आगे कहते हैं, कि मैंने अपना भित्ति चित्रण और मूर्तिकला में कई प्रकार की मूर्तियां और पेंटिंग्स बनाई हुई है। जिनका विषय केवल और केवल भारतीय चित्रकला ही रही है। उन्होंने अपने चित्रों में भारतीय प्रतीक चिन्हों का प्रयोग सर्वाधिक किया है, यहां प्रथम बार इस बात की पुष्टि भी की है। उन्होंने अपने कुछ कार्यों के फोटोग्राफ्स को सभी के समक्ष प्रस्तुत किया। जिनमें यह पूर्णतया स्पष्ट होता है कि विशाल भटनागर की कला पूर्ण रूप से भारतीय प्रतीक चिन्हों पर आधारित है। उन्होंने हमेशा अनेक कार्यशालाओं में यह बात कहते रहे हैं, कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में जरूर अपनी कलाकृतियों को लेकर जाना चाहिए। परंतु अपने देश की मूल भावना अपने देश की मूलकृतियों को अपनी कला को कभी भी भूलना नहीं चाहिए। हम संप्रेषण करने के लिए दूसरे देश की भाषाओं को सीख जरूर सकते हैं, लेकिन अपने देश की भाषा में उसको किस प्रकार से प्रयोग करना है, किस प्रकार से उसका व्यवहार में लाना है। अपने कला में यह भी हमें सीखना होगा ना कि दूसरे देशों की सभ्यता की कलाओ को अपनी कला में तोड़ मरोड़ कर पेश करना। उन्होंने बच्चों को चित्रकला और मूर्तिकला के विषय में भी विस्तृत जानकारी दी।
कार्यक्रम के अंत में कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रोफेसर बीरपाल सिंह ने सभी आगंतुकों, कलाकारों, भारतीय प्रज्ञान परिषद, प्रज्ञा प्रवाह के कार्यकर्ताओ, समाज के प्रबुद्ध जनों, विधार्थियों का धन्यवाद दिया, उन्होंने कहा,कि यह अनुभव हमारे किये एक नई प्रेरणा लेकर आया है, क्योंकि मुजफ्फरनगर इकाई के द्वारा यह कार्यक्रम आयोजित करने के बाद आज मुझे भी कला के विषय मे कुछ सीखने को मिला है, आशा है, कि इससे सभी को बहुत प्रेरणा मिली होगी। इसके साथ ही आपने मुख्य वक्ता, मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि सहित सभी वरिष्ठ कार्यकर्ताओ के विषय के सार को उपयोगी बताया। सभी कार्यकर्ताओं, कलाकारों, शिक्षाविदों, विधार्थियों एवं आयोजनकर्ताओं को शुभकामनाएं दी।
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से भारतीय प्रज्ञान परिषद प्रज्ञा प्रवाह मेरठ प्रांत, प्रज्ञा परिषद ब्रज, देवभूमि विचार मंच के कार्यकर्ताओं, सहयोगी संस्थाओं, कलाकारों, प्रबुद्ध जनों के साथ-साथ मुजफ्फरनगर जिले के प्रमुख महाविद्यालयों के शिक्षकगण, प्रतिभागी, विधार्थी रहे। हैं। कार्यक्रम में भारतीय प्रज्ञान परिषद के प्रांत संयोजक अवनीश त्यागी, प्रज्ञा परिषद अध्यक्ष डॉ प्रवीण तिवारी, संयोजक प्रोफेसर वी.के. सारस्वत, देवभूमि विचार मंच के अध्यक्ष डॉ चैतन्य भंडारी, संयोजिका डॉ अंजलि वर्मा, हस्तिनापुर संदेश पत्रिका के संपादक डॉ सूर्य प्रकाश अग्रवाल, प्रांत शोध संयोजिका डॉ शीला टावरीजी, सहसंयोजक डॉ देवेश, अनुराग विजय अग्रवाल, डॉ एस सी वार्ष्णेय, डॉ महेश दिवाकर, डॉ नितिन कुमार, डॉ ऋचा जैन , डॉक्टर अमित कुमार, श्री नीरज मौर्य, श्री भास्कर द्विवेदी मीडिया, श्री कुलदीप कुमार, इंजीनियर पंकज कुमार, डॉ जी. आर.गुप्ता, डॉ अलका तिवारी, डॉ वंदना, सविता वर्मा, डॉ श्री राम शर्मा, डॉ दिनेश शर्मा, डॉ के.के. शर्मा, मीनाक्षी, डॉ अमिता, डॉ वकुल बंसल, योगेश शर्मा, डॉ अमित अवस्थी, डॉ अनिल जैसवाल, डॉ योगेश त्यागी, डॉ भूपेंद्र सिंह आदि उपस्थित रहें।
- अवनीश त्यागी, प्रांत संयोजक एवं कार्यक्रम संयोजक
भारतीय प्रज्ञान परिषद प्रज्ञा प्रवाह मेरठ प्रांत
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें