जैसे किसी लड़की की शादी में बुआ का लड़का आकर बहुत सारा काम कर देता है वही हाल चुनाव में कार्यकर्ताओं का होता है, शादी के बाद न तो कोई बुआ के बेटे को खोजता है और न ही विधायक, मन्त्री बना व्यक्ति कार्यकर्ता को.
क्या आपने देखा है किसी लड़की के पिता को अपने बहन के लड़के को शादी बाद खोजकर उसके भविष्य को सुरक्षित करने की कोशिश करते हुए? क्या आपने कभी देखा या सुना है किसी विधायक, मन्त्री को अपने चुनाव में काम किये हुए कार्यकर्ताओं को रोजगार अथवा काम देते हुए? जहां तक मुझे पता है ऐसा आपने शायद ही कभी सुना या देखा होगा लेकिन इसकी भी उम्मीद मुझे मात्र 0.1 फिसद ही है.
किसी आइडियोलॉजी को मानना अच्छी बात है लेकिन सम्बन्धित विचारधारा से जुड़े नेता चाहते हैं कि आप उस विचारधारा के प्रति इस कदर समर्पित हो जाईये कि उसके अलावा आपको कोई अन्य विचारधारा समानांतर लगे ही नहीं वह इसलिए ऐसा चाहते हैं ताकि आप उनके किसी काम पर चाह कर भी प्रश्नचिन्ह न उठा सकें. जैसे अगर उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है और किसी इंजीनियरिंग ग्रेजुएट बेरोजगार ने आत्महत्या कर ली तो कोई भाजपा से जुड़ा हुआ व्यक्ति इसमें सरकार की आलोचना नहीं करेगा वहीं अगर दिल्ली में अगर किसी बेरोजगार ने आत्महत्या कर ली तो आम आदमी पार्टी से जुड़ा हुआ व्यक्ति सरकार की आलोचना नहीं करेगा. इसलिए अगर आप बेरोजगार हैं तो आपकी आइडियोलॉजी रोजगार पाना होना चाहिए न कि सोशल साइट्स पर नेताओं और पार्टियों के लिए तू-तू, मैं-मैं करना होना चाहिए. राजनीतिक दल के नेता आपके घर कौन सी सब्जी बनेगी, आटा कैसे पिसायेगा उसकी चिन्ता नहीं करते बल्कि वह यह चाहते हैं कि उनसे जुड़े कार्यकर्ता उक्त नेता की, सम्बन्धित विचारधारा वाले दल की कमियों को छुपाएं तथा उनका बचाव करें.
युवाओं का समय के साथ विचारधारा बदल देना फिर भी ठीक है लेकिन विचारधारा के नाम पर भ्रमित कर देने वालों के साथ रहना बिल्कुल ठीक नहीं होता है, हाँ कुछ लोग यह जरूर कहेंगे कि कहाँ पहले थे अब कहाँ चले गए लेकिन वह न तो आपके घर पर सरसों का तेल पहुंचाने जाएंगे और न ही आपकी बाइक में पेट्रोल डलवायेंगे.
"कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि फ़लाना लड़का एकदम असामाजिक है, किसी से मतलब नहीं रखता लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता कि कुछ लड़के सामाजिक बनने के लिए नहीं बल्कि समाज को बदलने के लिए होते हैं और इसलिए ही समाज से दूर रहकर पढ़ाई करते हैं."
आजकल आप अभी कुछ लाइने लिखकर सोशल साइट्स पर कोई फ़ोटो पोस्ट करेंगे तो लोग आठ कदम आगे तक का सोच लेते हैं एवं अनुमान लगाकर जजमेंट देने में देर नहीं करते जबकि वह खुद अपने वोट के साथ ही न्याय नहीं कर पाते कि वह अपना वोट जिस व्यक्ति को दिए होते हैं क्या वह व्यक्ति ही सबसे योग्य था उक्त प्रत्याशियों में?
देश की पहली संसद में 9 फीसद सांसद किसी बड़े, राजनीतिक परिवार से जुड़े थे, वर्तमान समय की संसद में 40 वर्ष से कम उम्र के 98 फीसद सांसद किसी न किसी राजनैतिक व्यक्ति के रिश्तेदार हैं और उनकी लीगेसी को आगे बढ़ा रहे हैं.
अगर आपको लगता है कि आप किसी नेता का झण्डा ढोकर, जय जयकार करके नेता बन जाएंगे तो यह गलत है. किसी नेता को क्या आन पड़ी कि वह आपकी चिन्ता करे, अब भला देश के गृहमंत्री मेरी क्यों चिन्ता करेंगे कि दिव्येन्दु को 2022 में घोसी से प्रत्याशी बना दिया जाए या राज्यमंत्री बना दिया जाए. नेता आपकी चिन्ता तभी करते हैं जब आप उनके लिए या तो लाभदायक होते हैं या नुकसानदायक, लाभदायक होने की दशा में आपको साथ जोड़ा जाता है और नुकसानदायक होने की दशा में आपको मैनेज किया जाता है. राजनीति का वह दौर गया जब आपके संघर्ष और त्याग को मान दिया जाता था, वर्तमान युग में धन,जाति एवं बाहुबल को मान दिया जाता है.
युवा सही समय पर विचारधारा के घुप अंधेरे से बाहर नहीं निकल पाते तो एक वक्त बाद परिस्थितियों के चलते उनकी विचारधारा कमाने, खाने और परिवार पालने में सिमट कर रह जाती है. उन्हें अपनी गलती का एहसास तब होता है जब उनसे कम योग्य लोग विधायिका में अपनी ताकतों को दुरुपयोग करते दिखते हैं और उनकी बदौलत उनके परिजन, उनके रिश्तेदार आम लोगों से रौब में बात करते हैं.
उस समय वही युवा जो कभी किसी नेता के लिए झण्डा ढोये होते हैं वह समाज से खुद को काट लेते हैं क्योंकि उनके ऊपर परिवार की बहुत जिम्मेदारियाँ आ गईं होती हैं और आय का स्रोत समिति होता है, उनके पास न इतना वक्त बचता है कि वह समाज को बदलने की सोच सकें और तो और कुछ ही सालों बाद वह नेता भी ठीक से नहीं पहचानता जो पहले हर बात पर पीठ ठोक शाबासी दिया होता है.
फिर भी जब आप कभी किसी मुसीबत में फंस कर उक्त नेता के पास अपनी गुहार लेकर जाते हैं तो वह पहले अपना राजनीतिक लाभ और हानि देखता है उसके बाद कई दिन आपको अपने पीछे घुमाता है फिर या तो टाल देता है या फिर किसी लाभ को देखकर आपके लिए एक फोन कॉल करके पैरवी कर देता है.
इसलिए वर्तमान समय में युवाओं को राजनीतिक दलों का झण्डा ढोने से पहले खुद के परिवार के उम्मीदों के झण्डे को ढोने की जरूरत है. किसी विचारधारा के लिए लड़ने से पहले खुद के और अपनों के ख़्वाबों के लिए लड़ने की जरूरत है, क्योंकि देशभक्ति देश के लिए इनकम टैक्स देकर की जाती है न कि सोशल साइट्स पर लिखकर और अपने परिजनों को दुखी कर, उनके सपनों को तोड़कर.
दिव्येन्दु राय
स्वतन्त्र टिप्पणीकार & राजनैतिक विश्लेषक
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