उत्तर प्रदेश देश की राजनीति को सर्वाधिक प्रभावित करने वाला एवं जनाकांक्षाओं का प्रदेश है। इस प्रदेश की एक सबसे बड़ी यह खासियत है कि यहां लोग जैसे सर आँखों पर बैठा सत्ता के शिखर पर पहुंचाते हैं वह जनआक्रोश में आकर सत्ता से बेदखल भी कर देते हैं। ऐसा मैं नहीं बल्कि सूबे का राजनीतिक इतिहास कह रहा, पिछले 20-25 वर्षों में नज़र डालें तो यहां कोई भी सरकार दुबारा रिपीट नहीं हुई है वापसी के लिए उन्हें लम्बा बनवास काटना पड़ा है।
इन सरकारों की वापसी न करने की सर्वाधिक महत्वपूर्ण वजह भूमिहार और ब्राह्मणों का नाराज होना रहा है, 2005 में समाजवादी पार्टी की सरकार इन्हीं जातियों के बैसाखी के सहारे चल रही थी लेकिन तत्कालीन भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या ने इन जातियों का समाजवादी पार्टी से मोह भंग कर दिया फिर यह दोनों जातियां बसपा के साथ 2007 के चुनाव में नज़र आईं और बसपा ने शुरू में बकायदा सम्मान भी दिया लेकिन बामसेफ के लोगों के और बसपा के मुखिया के तानाशाही के चलते इन जातियों ने उस समय विकल्प के तौर पर सपा को चुना और समाजवादी पार्टी ने 1 दर्जन से भी अधिक भूमिहारों और ब्राह्मणों को मन्त्री बनाया।
लेकिन अल्पसंख्यक समुदाय के तरफ अत्यधिक झुकाव तथा सत्ता में एक जाति की अत्यधिक दख़ल के चलते यह लोग 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ खड़े नज़र आये और भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। वर्तमान समय में भाजपा से 7 भूमिहार एवं 58 ब्राह्मण विधायक हैं लेकिन यह जातियां इस सरकार में भी उपेक्षित नज़र आ रहीं हैं।
उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा क्षेत्रों में से कोई एक भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां इन जातियों का प्रभाव नहीं है, अकेले भूमिहार (त्यागी) जाति के मतदाता ही सूबे की तक़रीबन 126 विधानसभा क्षेत्रों में हराने तथा जिताने की क्षमता में हैं।
उत्तर प्रदेश का अगर जातिगत समीकरण देखा जाए तो दलित वर्ग के बाद सूबे में सर्वाधिक ब्राह्मण हैं जो तक़रीबन 15•8 फीसद एवं अगर इसमें 3•87 फीसद भूमिहार मतों को जोड़ दिया जाए तो यह आंकड़ा 20 फीसद के आस पास पहुँच जाता है तो की किसी की सरकार बनाने तथा गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए पर्याप्त है।
उत्तर प्रदेश की राजनीति का एक वह दौर हुआ करता था जब 100-125 से ज्यादा भूमिहार ब्राह्मण विधायक हुआ करते थे, मात्र पूर्वी उत्तर प्रदेश से ही 17 से 18 भूमिहार विधायक बना करते थे एवं उत्तर प्रदेश में एक ही साथ 3-3 भूमिहार सांसद हुआ करते थे लेकिन बदलते वक्त के साथ राजनैतिक दलों ने इन जातियों से जनसहयोग, धनसहयोग एवं वोट तो ख़ूब लिया लेकिन बदले में जो मान सम्मान वापस देना चाहिए वह नहीं दिया।
वर्तमान समय में देश एवं प्रदेश में सर्वाधिक शोषित तथा पीड़ित कोई जाति है तो वह भूमिहार एवं ब्राह्मण हैं क्योंकि इन जातियों को न तो आरक्षण का लाभ मिला और न ही इन जातियों को इनकी जाति के नेताओं, अधिकारियों ने आर्थिक तौर पर सबल किया। वर्तमान समय में इस जाति के 60 फीसद से ज्यादे लोग ग़रीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं एवं वर्तमान व्यवस्था को कोस रहे हैं।
अगर बात उत्तर प्रदेश की हो तो यहां पिछले कई सालों से ब्राह्मण और भूमिहार राजनैतिक एवं आर्थिक रूप से हाशिये पर जाते नज़र आ रहे हैं। किसी जमाने में कई बार ब्राह्मण मुख्यमंत्री रहे और हर बार कई दर्जन भूमिहार विधायक एवं मंत्री रहे। आज की स्थिति यह है कि ब्राह्मण और भूमिहार बहुल सीटों पर भी अन्य जाति के लोग चुनाव लड़ और जीत रहे हैं। उसी प्रकार नेतृत्व में भी इन दोनों जातियों की उपेच्छा होती देखी जा रही है, इतना ही नहीं बल्कि इनके साथ शारीरिक अपराध एवं अन्य अत्याचार की घटनाएँ भी रोज़ ब रोज़ हो रही हैं। सर्व विदित है कि सैकड़ों ब्राह्मणों की हत्याएँ हाल में हुई हैं, इन जाति के अधिकारियों पर भी अन्याय और अत्याचार हुए हैं। ब्राह्मणों का कहना है कि इन घटनाओं एवं दुराचारों के पीछे शासन की शह और एक जाति विशेष का आक्रामक रवैया है। इस बात में काफ़ी तथ्य है ऐसा निष्पक्ष लोगों के द्वारा भी बताया जा रहा है।
एके शर्मा के राजनीतिक रूप से सक्रिय होने से भूमिहार तथा ब्राह्मण वर्ग को एक उम्मीद की आस दिखी थी लेकिन सरकार में उनको सम्मान न मिलने से यह वर्ग बेहद नाराज़ है तथा इस वर्ग की नाराज़गी सरकार को भारी पड़ सकती है।
ब्राह्मण यह भी कहते हैं कि विभिन्न पार्टियों ने उनका सिर्फ़ उपयोग किया। किसी ने कुछ दिया नहीं, भूमिहार उससे भी ज़्यादा नाराज़ हैं क्योंकि भूमिहारों का कहना है कि एक बार उन्हें मनोज सिन्हा के नाम पर अपमानित किया गया और अब अरविन्द शर्मा के नाम पर अपमानित किया जा रहा। भूमिहारों का कहना है कि हम न तो अपराधी हैं और न ही ठेकेदार हैं इसलिए हमें सत्ता के संरक्षण की कतई जरूरत नहीं है लेकिन ऐसे ही हमारे जाति के नेताओं का अपमान हुआ तो हम भी तख्ता पलट करना जानते हैं।
भूमिहार खेती के आधार पर स्वयं सक्षम है इसलिए सरकार से उनकी सीधी उमीदें कम हैं लेकिन सम्मान की भूख तो है ही। ये दोनों जातियाँ यह भी कह रही हैं कि पिछले दो-तीन दशकों में उनकी नेतागीरी कमजोर रही है। इसलिए नए नेता की तलाश थी जो ए के शर्मा के आने से सफल हो गयी लेकिन उनका यह अफ़सोस है कि उनकी बड़ी जनसंख्या होने के बावजूद अभी तक वो लोग विभाजनकारी राजनीति का शिकार होते रहे हैं।
ब्राह्मण कहते हैं कि सन् 2016 में तत्कालीन मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश सरकार श्री आलोक रंजन की अध्यक्षता में राज्य सरकार ने उत्तर प्रदेश में एक आंतरिक शासकीय सर्वे करवाया था जिसको सार्वजनिक नहीं किया गया। लेकिन 2017 विधानसभा चुनाव इसी गणना के आँकड़ों का उपयोग करके लड़े गए। उसी समय अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा 75 जिलों के ब्लॉक एवं गांव में निवास करने वाले ब्राह्मण समाज की सूची तत्कालीन सरकार से माँगी गयी थी।
उस सर्वे में यह पाया गया कि ब्राह्मण समाज विभिन्न क्षेत्रों में प्रजाति और गोत्र के अनुसार विभाजित है। जो कि मुख्य रूप से शुक्ला, द्विवेदी, त्रिवेदी, चतुर्वेदी, दुबे, तिवारी, पांडेय, चौबे, उपाध्याय, पाठक, मिश्रा, शास्त्री, विद्यार्थी, शर्मा, शांडिल्य, भारद्वाज, वशिष्ठ, पराशर, व्यास, भूमिहार-ब्राह्मण, बंदोपाध्याय,चटर्जी, बनर्जी चक्रवर्ती, खत्री और खन्ना आदि में विभाजित हैं ।ब्राह्मणों में तमाम उपजातियां भी शामिल हैं जिसमें भट्ट ,गिरी, (गोसाई ), गौड़ और मृत्यु उपरांत कर्मकांड कराने वाले ब्राह्मण ( महापात्र) इत्यादि शामिल हैं। कुछ प्रजातीयों का भौगोलिक वर्गीकरण भी है। जैसे शाक्ल्यदीपी, सरयूपारी, कान्यकुब्ज। कुछ क्षेत्रों में लिखे जाने वाले सनाढ्य, पचौरी जैसे उपनाम, गोत्र और प्रवर भी ब्राह्मण समुदाय में शामिल हैं ।
इनमें 3•87 % भूमिहार (ब्राह्मण) भी है जिनमें त्यागी, राय, शाही, पांडेय, मिश्रा, तिवारी, द्विवेदी, कुमार, वत्स, भारद्वाज, शर्मा एवं सिंह आदि लिखने वाले लोग हैं लेकिन भूमिहारों के अत्यधिक उपनाम होने की वजह से कोई इस जाति का सटीक आकलन नहीं कर पाता। ब्राह्मण एवं भूमिहार की उत्पत्ति एवं संस्कार एक हैं। परशुराम भगवान दोनों के आराध्य हैं, इन दोनों में कभी कोई मतभेद नहीं रहा। कोई कारण नहीं होते हुए भी कई बार इनका राजनैतिक दृष्टिकोण अलग रहा है लेकिन वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए अब इन दोनों जातियों ने एक साथ रहने का मन बना लिया है।
इस पुख़्ता तथ्यों के आधार पर इन दोनों जातियों ने अब ध्रुवीकरण की साझा रणनीति अपनायी है। उन्होंने संगठित होकर पुराने तथ्यों पर आधारित एक गणना की है। इस आधार पर जो तथ्य उभरकर सामने आए उसमें यह प्रमाणित हो रहा है कि उत्तर प्रदेश के कुल मतदाताओं का 15•8 प्रतिशत यानी 16 प्रतिशत या उससे से भी अधिक ब्राह्मण और 3•87 प्रतिशत भूमिहार मतदाता हैं। इस प्रकार किसी एक ख़ास जाति या वर्ग की बात की जाए तो अनुसूचित जाति के बाद सबसे बड़ा वर्ग ब्राह्मण-भूमिहार का है।
सर्वे का मुख्य आधार जिलों और तहसीलों में उपस्थित चुनाव हेतु जनगणना एवं पल्स पोलियो अभियान के तहत पारिवारिक विवरण एवं अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के सर्वे को तथा 2016 में उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की जनसंख्या प्रतिशत को आधार माना गया जिसके आधार पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश , बुंदेलखंड में ब्राह्मणों की संख्या कम तथा अवध प्रांत एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण जनसंख्या घनत्व अधिक पाया गया, पूर्वी उत्तर प्रदेश में तो
भूमिहार ब्राह्मणों का प्रतिशत 23-24 तक जाता है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में वही पार्टी जीतती है और उसी पार्टी की सरकार होती है जिसको भूमिहार ब्राह्मण वर्ग का समर्थन हो, जैसे पहले कांग्रेस फिर बसपा, सपा और वर्तमान में भाजपा।
इस प्रकार प्रदेश की लगभग पाँचवां हिस्सा ब्राह्मण है। इनमें 30% परास्नातक, 20% स्नातक 10% इंटरमीडिएट एवं 20% हाई स्कूल पास तथा साक्षर हैं परंतु 30% ब्राह्मण-भूमिहार भूमिहीन, निर्धन एवं गरीब हैं। उनका जीवन स्तर दलितों से भी बदतर है।
इन जातियों में एक ख़ासियत यह है कि सभी समाज के लोग इनको प्रेम करते हैं तथा सबकी मदद के लिए सदैव तैयार रहते हैं, वैमनस्य इनके स्वभाव में नही है। इसी जाति से ताल्लुक रखने वाले नेता ए के शर्मा का स्पष्ट रुप से एक ही मूल मंत्र है - सबका साथ सबका विकास। इसलिए ब्राह्मण-भूमिहार के साथ वो अन्य जातियों के लिए भी आकर्षण के केंद्र बने हुए हैं। विशेष रूप से अनुसूचित जातियों के उपरांत अति पिछड़ी जातियों जैसे कि निषाद, गोड़, कुर्मी, मौर्य एवं राजभर नेताओं से उनके निकट के व्यक्तिगत सम्बंध विकसित हो गए हैं। सनातन संस्कृति एवं पूजा पद्धति में पूर्ण डूबे हुए होने के साथ साथ उनके स्वभाव में कमजोर वर्गों के प्रति संवेदनशीलता देखने को मिलती है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इसका कितना लाभ भाजपा ले पाती है क्योंकि ब्राह्मण और भूमिहार वर्ग को एके शर्मा के जरिये अपना मान सम्मान बचता दिख रहा है, इन वर्ग के लोगों का कहना है कि अबतक बहुत पिछलग्गू की भूमिका में रह लिए लेकिन अब हमें ऐसा नेता चाहिए जो हमारे मान सम्मान के लिए खड़ा हो सके।
सौमिक दुबे
स्वतन्त्र विचारक
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